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Kalsarpa Dosha – काल शर्प दोष क्या है …? 09968550003
शास्त्रों में काल शर्प दोष के बारे में नहीं लिखा गया है लेकिन पिछले कुछ सालो से इस योग का प्रचलन बहुत तेजी के साथ हुआ है, लाल किताब में कालसर्प दोष का वर्णन कही भी नहीं है। काल शर्प दोष के नाम से इन्शान सहम सा जाता है , जीवन में सुख -दुःख तो आता ही रहता है , लेकिन अगर हमें उस दुःख के बारे पता है तो हम उसे कुछ कम जरुर कर सकते है , उपाय के द्वारा ,
वैसे देखा जाय तो शर्प योनी के बारे में अनेक वर्णन मिलते है हमारे धर्म शास्त्रों में गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है की पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म केवल विषय -वासना के कारण जीव की उत्त्पत्ति होती है | जीव रुपी मनुष्य जैसा कर्म करता है उसी के अनुरूप फल मिलता है. विषय -वासना के कारन ही काम-क्रोध, मद-लोभ और अहंकार का जन्म होता है इन विकारों को भोगने के कारण ही जीव को “सर्प “योनी प्राप्त होती है | कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को काल शर्प दोष कहा जाता है।
कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तब कालसर्प योग बनता है ज्योतिष में इस योग को अशुभ मन गया है लेकिन कभी कभी यह योग शुभ फल भी देता है, ज्योतिष में राहू को काल तथा केतु को सर्प माना गया है राहू को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प का पूंछ कहा गया है वैदिक ज्योतिष में राहू और केतु को छाया ग्रह संज्ञा दी गई है, राहू का जन्म भरणी नक्षत्र में तथा केतु का जन्म अश्लेषा में हुआ है जिसके देवता “काल “एवं “सूर्य “है | राहू को शनि का रूप और केतु को मंगल ग्रह का रूप कहा गया है ,राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है,राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है, राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो,तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है
मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मो के फलस्वरूप यह दोष लगता है जैसे शर्प को मारना या मरवाना , भ्रूण हत्या करना या करवाने वाले को , अकाल मृत्यु ( किसी बीमारी या दुर्घटना में होने करण ) उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है
मनुष्य को इसका आभास भी होता है —-जैसे …
जन्म के समय सूर्य ग्रहण, चंद्रग्रहण जैसे दोषों के होने से जोप्रभाव जातक पर होता है, वही प्रभावकाल सर्प योग होने पर होता है
जातक के लक्षण/ फल/प्रभाव परिलक्षित/दृष्टव्य होते हैं :- अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना।धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, सोते समय बुरे स्वप्न देख कर चौक जाना या सपने में शर्प दिखाई देना या स्वप्न में परिवार के मरे हुए लोग आते हैं. किसी एक कार्य में मन का न लगना,शारीरिक ,आर्थिक व मानशिक रूप से परेशान तो होता ही है, इन्शान नाना प्रकार के विघ्नों से घिरा होता है प्रायः इसी योग वाले जातको के साथ समाज में अपमान ,परिजनों से विरोध ,मुकदमेबाजी आदि कालसर्प योग से पीड़ित होने के लक्षण हैं.
काल सर्प योग के १२ प्रकार के होते है :-
(1) अनंत काल सर्प योग, (२)कुलिक काल सर्प योग, (3) वासुकी काल सर्प योग,
(4) शंखपाल काल सर्प योग, (५)पदम् काल सर्प योग,(६) महापद्म काल सर्प योग,
(७) तक्षक काल सर्प योग,(८) कर्कोटक काल सर्प योग,(९) शंख्चूर्ण काल सर्प योग,
(10) पातक काल सर्प योग, (११) विषाक्त काल सर्प योग,(१२) शेषनाग काल सर्प योग,
काल सर्प योग शुभ फल भी प्रदान करता है :-
कुंडली में कालसर्प योग को कमजोर बनानेवाले महत्वपूर्ण योग केंद्रमें स्वगृही या उच्च का गुरु, शुक्र,शनि, मंगल, चंद्र इनमें से कोई भीग्रह स्वगृही या उच्च का होने पर कालसर्प योग भंग होता है। उच्च का बुध और सूर्य हो तो बुधादित्य योग होने पर कालसर्प योगकमजोर होता है।केंद्र में स्वगृही या उच्च के चंद्रमंगल से चंद्र मांगल्य योग बनता होतो कालसर्प योग भंग होता है।प्रत्येक जातक की आयु के 25 वर्ष राहु व केतु के आधिपत्य में रहते हैं। (18 वर्ष राहु की महादशा + 7 वर्ष केतु की महादशा = दोनों का योग 25 वर्ष हुआ)। ”ज्योतिष शास्त्र का एक मुखय सूत्र है कि 3, 6, 11 भावों में पाप ग्रहों की उपस्थिति शुभ फलदायक रहती है। सामान्य रूप से 3, 6, 11वें भाव में स्थित राहु को शुभ माना गया है।
कालसर्प योग की शांति के वैदिक उपाय ( Vedic Remedies of Kalsarp Yoga )
अगर आप की कुंडली में पित्रदोश या काल शार्प दोष है तो आप किसी विद्वान पंडित से इसका उपाय जरुर कराएँ..
सुप्रसिद्ध बारह ज्योतिलिंगोंमें से एक स्थान त्रयंबकेश्वर में यहां यह विधि विधान प्राचीनकाल से होता आया है। त्रयंबकेश्वर महाश्मशान है। गोदावरी नदी का पवित्रस्थान है। यहां के लोगों को इस विधिका संपूर्ण ज्ञान है इसके आलावा प्रयाग, भीमाशंकर, काशी आदि शिवसंबंधी समस्त तीर्थों में की जाती है अगर समय का आभाव है तो किसी भी शिव मंदिर में सोमवती अमावश्या या नाग पंचमी के दिन ही काल शर्प दोष की शांति करनी चाहिए
काल के स्वामी महादेव शिव जी है सिर्फ शिव जी है जो इस योग से मुक्ति दिला सकते है क्योंकि नाग जाति के गुरु महादेव शिव हैं। , शास्त्रो में जो उपाय बताए गये हैं उनके अनुसार
जातक किसी भी मंत्र का जप करना चाहे, तो निम्न मंत्रों में से किसी भी मंत्र का जप-पाठ आदि कर सकता है।
१- ऊँ नम शिवाय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए और शिवलिंग के उपर गंगा जल, कला तिल चढ़ाये ।
२ – महामृत्युंजय मत्र : ॐ हौं ॐ जूं˙ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यंवकंयजामहे सुगंधि पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव वन्धनाम् मृर्त्योमुक्षीय मामृतात्॥ ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ॥
३- राहु मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः और केतु मंत्र : ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
४- नव नाग स्तुति : अनंतं वासुकिं शेषंपद्म नाभं च कम्बलं।शंख पालं धृत राष्ट्रं तक्षकं कालियंतथा॥ एतानि नव नामानि नागानां चमहात्मनां।सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः कालेविशेषतः॥तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्॥
सोमवती अमावश्या या नाग पंचमी के दिन रूद्राभिषेक कराना चाहिए.
नाग के जोड़े चांदी या सोने में बनवाकर उन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर दें।
सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, कला तिल चढ़ाये । पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है
नागपंचमी के दिन व्रत रखकर नाग देव की पूजा करनी चाहिए.
कालसर्प गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए.
ॐ काल शर्पेभ्यो नमः… अगर कोए इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी…
इन उपायों से कालसर्प के अनिष्टकारी प्रभाव में कमी आती है
काल शर्प दोष की शांति करने के लिए संपर्क करे :- कौशल पाण्डेय Mobile No- 09968550003.09310134773
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