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पीपल के पेड़ की सेवा कर करे दुखों का निवारण :- कौशल पाण्डेय 09968550003
मूले विष्णु:स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि:।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित:।।
स एवं ष्णिुद्र्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवितपुण्यमूल:।
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य:।।
स्कंदपुराण/नागरखंड 247/41-42, 44
हमारे भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, पीपल वृक्ष में देवताओं का वाश (निवास) होता है ,स्कन्द पुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु,तने में कृष्ण ,शाखाओं में नारायण,पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं , भगवान श्रीकृष्ण श्री भगवद्गीता में अर्जुन से कहते हैं, ‘अश्वत्थ सर्वा वृक्षाणां देवषीणां च नारद।।’ अर्थात् हे अर्जुन, मैं समस्त वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं तथा देव ऋषियों में नारद मुनि हूं। पद्मपुराण में एक स्थान पर स्वयं भगवान मधुसूदन का कथन है, ‘जो पीपल वृक्ष की सेवा करके वस्त्र दान करता है, वह समस्त पापों से छूटकर अंत में विष्णु भक्त हो जाता है। कहते है की अमावश्या या शनिवार के दिन जो भी पीपल का वृक्ष किसी धर्म स्थान में या नदी के किनारे लगवाता है उसकी आने वाली वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती है । पीपल की सेवा करने से पित्र हमेशा प्रसन्न रहते है, स्कन्दपुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को काटना ब्रह्मा हत्या के समान पापकर्म है।
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पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्रम्में दिया गया मंत्र है-
अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन। इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं।देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥
व्रतों का पालन करने से व्यक्ति दीक्षित होता है। उसके मन में श्रद्धा भाव का संचार होता है और श्रद्धा से ही सत्यस्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति होती है।
व्रतेनदीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम्। दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते॥
अश्वत्थ पीपल के वृक्ष का ही एक नाम है। पंचदेव वृक्षों में अश्वत्थ का स्थान सर्वोपरि है। इस वृक्ष पर गो, ब्राह्मण, वेद, यज्ञ, नदी तथा सागर आदि प्रतिष्ठित रहते हैं। इसका मूल ‘अ’ काररूप, शाखाएं ‘उ’ काररूप और फल-पुष्प ‘म’ काररूप हैं। इसका मुख आग्नेय दिशा की ओर है। इसे कल्पवृक्ष भी कहा गया है।
हिंदू धर्म में पिप्पल-विवाह का भी विधान है। अश्वत्थ की परिक्रमा करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है। जिस कुल में अश्वत्थ सेवा की जाती है, उसे उत्तम लोक में स्थान मिलता है।
अश्वत्थ वृक्ष के नीचे यज्ञ करने पर महायज्ञ का फल मिलता है।
पीपल का वृक्ष लगाने से व्यक्ति की वंशपरंपरा कभी समाप्त नहीं होती। साथ ही ऐश्वर्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है और उसके पितृगण को नरक से मुक्ति मिलती है। अश्वत्थ वृक्ष की पूजा करने से सभी देवता पूजित हो जाते हैं। ‘अश्वत्थः पूजिते यत्र पूजिताः सर्वदेवताः॥’ (अश्वत्थ स्तोत्र) ‘अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम्’ अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं।
शनिवार को पीपल का स्पर्श, पूजन और सात परिक्रमा करने के उपरांत सरसों के तेल के दीपक का दान करने से शनि के कोप का शीघ्र शमन होता है। शनि देव का स्तवन ‘पिप्पलाश्रयसंस्थिताय नमः’ मंत्र द्वारा किया जाता है। इससे शनिदेव का पीपल के आश्रय में रहने का तथ्य स्वतः प्रमाणित होता है।
शनिवासरीय अमावस्या को पीपल के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन के विशेष ग्रहयोग में पीपल के वृक्ष का सविधि पूजन एवं सात परिक्रमा करने के पश्चात् पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके काले तिल से युक्त सरसों के तेल का दीपक जलाकर छायादान करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात-दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है। इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गॢमयों में ठंडी और सॢदयों में गर्म रहती है। इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण होने के कारण यह रोगनाशक भी होता है।
इसके नित्य स्पर्श से रोग-प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि, मन:शुद्धि, आलस्य में कमी, शरीर के आभामंडल की शुद्धि, विचारधारा में धनात्मक परिवर्तन, ग्रहपीड़ा का शमन तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लम्बी होती है।
अनुराधा नक्षत्रयुक्ता शनिवासरीय अमावस्या को इस वृक्ष का विधिवत पूजन करने से शनि ग्रह के प्रकोप से मुक्ति मिलती है। वहीं, इस अमावस्या को श्राद्ध करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
अमावस्यांत श्रावण मास में शनिवार को पीपल के नीचे स्थित हनुमान जी की अर्चना करने से बड़े-से-बड़ा संकट दूर हो जाता है।
सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी जी का अधिकार होता है
पीपल को ब्रह्म स्थान भी माना जाता है। इतना ही नहीं, पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में पीपल के वृक्ष का योगदान अति महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक-से-अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है। यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है। इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वतः हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है। श्रीमद् भागवत महापुराण (11। 30। 27) के अनुसार द्वापर युग में परमधाम जाने के पूर्व योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस दिव्य एवं पवित्रतम वृक्ष के नीचे ही बैठकर ध्यानावस्थित हुए थे। उपनिषदों में उल्लेख है कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड अश्वत्थ वृक्ष रूप है, जो सदा से है। इसका मूल पुरुषोत्तम ऊपर स्थित है और इसकी शाखाएं नीचे की ओर हैं। ‘ऊर्ध्वमूलोऽवाक्शाख एषोऽश्वत्थः सनातनः॥’ (कठोव्म् 2। 3। 1) ‘ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।’ (गीता 15। 1) कलियुग में भगवान गौतम बुद्ध को संबोधि की महाप्राप्ति बोध गया में पीपल के वृक्ष के नीचे ही हुई थी। इस कारण इस वृक्ष को बोधि वृक्ष भी कहा जाता है। पीपल का धार्मिक महत्व के साथ-साथ आयुर्वेदिक महत्व सर्वविदित है। यह वृक्ष स्थूल वातावरण के साथ ही सूक्ष्म वातावरा को भी प्रभावित करता है। इसका यह प्रभाव मात्र शरीर और मन तक ही सीमित नहीं है, वरन् यह हमारे भावजगत को भी आंदोलित करता है। इस संदर्भ में वैज्ञानिक प्रयोग और अनुसंधान भी हो रहे हैं। पीपल की इन समस्त विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही हमारे ऋषि-मुनियों ने इसकी बहुमुखी उपयोगिता पर बल दिया है। सर्वपापनाशक यह वृक्षराज अपने उपासक की मनोकामना पूर्ण करता है। पीपल के इन दिव्य गुणों से ही उसे पृथ्वी पर कल्प वृक्ष का स्थान मिला है।
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