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दीपावली महोत्सव १३-११-२०१२

KAUSHAL PANDEY
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दीपावली महोत्सव 2012 .Astrologer Kaushal Pandey 09968550003
दीपावली महोत्सव 13 नवम्बर 2012 दिन मंगवार को है , कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जब सूर्य और चंद्र दोनों तुला राशि में होते हैं, तब दीवाली का त्योहार मनाया जाता है।
यह पर्व असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम चैदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे, कृष्ण भक्तों के अनुसार दुष्ट राजा नरकासुर का वध भगवान कृष्ण ने इसी दिन किया था, जैन धर्म के अवलंबी भगवान महावीर का निर्वाण दिवस व आर्य समाजी स्वामी दयानंद की पुण्य तिथि इसी दिन मनाते हैं। दीपावली खुशियों का त्यौहार है। इस दिन हिंदू परिवारों में भगवान गणेश व लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन गणेश जी की पूजा से ऋद्धि-सिद्धि की व लक्ष्मी जी के पूजन से धन, वैभव की प्राप्ति होती है। दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। इसे भगवान का तेजस्वी रूप मान कर इसकी पूजा करनी चाहिए। पूजा करते समय अंतःकरण में सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो रहा है ऐसी भावना रखनी चाहिए।
दीपावली को कालरात्रि भी कहा जाता है क्योंकि तंत्र-मंत्र व यंत्रों की सिद्धि के लिए यह रात्रि अत्यधिक उपयोगी मानी जाती है।

लक्ष्मी पूजन स्थिर लग्न में ही करना उचित माना गया है।
शुभ मुहूर्त :-
व्यापारी वर्ग के लिए :- इस वर्ष धनु लग्न ०९:१३ से ११:१७ तक है
११:१७ से १३:९ तक मकर लग्न है भारतीय ज्योतिष के अनुसार लग्नेश की कर्म क्षेत्र में उच्चता और लग्न पर गुरु की दृष्टी अच्छा फल प्रदान करेगा
दीपमालिका सायंकाल १४:३० से १७:३४ के मध्य में मीन और मेष लग्न है मंगल और गुरु दोनों ही शुभ फल प्रदान करेगे .
दीपावली की रात्रि में १९:३१ से २१:४५ बजे तक मिथुन लग्न है पूजा करते समय बुध का दान करे .
रात्रि ११:४० से २४:३४ बजे तक कर्क और सिंह दो लग्न अत्यंत शुभ है इस लग्न में पूजा पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी ..

पूजन की सामग्री
कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन.
दीपावली पूजन विधि

आसन बिछाकर गणपति एवं लक्ष्मी की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
“ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –
ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा।

संकल्प करे ही शुभ कार्य करने चाहिए :- क
संकल्प में गंगा जल, लाल पुष्प, चावल चांदी का सिक्का दाहिने हाँथ में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो ऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०६९ , तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ मंगल वासरे स्वाति नक्षत्रे शुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये.

इसके बाद श्री गणेश लक्ष्मी के आगे संकल किया हुआ फूल रख दे .

इसके बाद कलश की स्थापना करे कलश में गंगाजल, पञ्च रत्न, सुपारी, कपूर और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढककर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर कलश के ऊपर पर रख दें। इसके बाद थाली में सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति अथवा मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां अथवा चित्र सजाएं। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत चंदन का श्रृंगार करके फल-फूल आदि से सजाएं। इसके ही दाहिने ओर एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलाएं जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है।

गणपति पूजन :-
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए. हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें.
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें. अर्घा में जल लेकर बोलें एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:. रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:. दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं. गणेश जी को वस्त्र पहनाएं. इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि.
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:. मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:. प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:. इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:. अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:
इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें.

कलश पूजन :-
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें.
ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

कुबेर पूजन- तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आह्वान करें-

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।

लक्ष्मी पूजन
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं. अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं.

अष्टलक्ष्मी पूजन :-
हाथ में लाल पुरप और अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:

नैवैद्य अर्पण :-
पूजन के पश्चात देवी को “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें. मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें. प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:. इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि. अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:.

दीपक पूजन: दीपावली के दिन पारिवारिक परंपरा के अनुसार ग्यारह, इक्कीस अथवा इनसे अधिक तिल के तेल के दीपक प्रज्वलित करके एक थाली में रखकर कर पूजन करें। इसके बाद महिलाएं अपने हाथ से संपूर्ण सुहाग सामग्री लक्ष्मी को अर्पित करें। अगले दिन स्नान के बाद पूजा करके उस सामग्री को मां लक्ष्मी का प्रसाद मानकर स्वयं प्रयोग करें, इससे मां लक्ष्मी की कृ पा सदा बनी रहती है।

क्षमा प्रार्थना – हे माँ लक्ष्मी जो मैंने आप का पूजन किया है, मै आप को समर्पित करता/करती हूँ , यदि मेरे से कोई भूल-चूक हो गई हो तो उसे क्षमा करे .
इसके बाद दंडवत प्रणाम कर के .. माँ का प्रसाद अपने घर-परिवार में बांटे ..

माता लक्ष्मी की कृपा पाने के कुछ सरल प्रयोग :-
१- दीपावली के दिन कमल गट्टे को हवन सामग्री में मिलाकर इस मंत्र से १०८ आहुति देने से माता लक्ष्मी अवस्य प्रसन्न होती है ..
‘ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नम:’
२- घर में या मंदिर में श्री यन्त्र की स्थापना कर के विधिवत पूजन करे .
३- आज के दिन घर में चांदी या स्टील की डब्बी में बहेड़ा और सिन्दूर रखने से कुबेर की कृपा बनी रहती है .
4-कार्यक्षेत्र में सफलता व आर्थिक स्थिति में उन्नति के लिए श्रीसूक्त का पाठ करें।ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी निष्फल नहीं होती
५-दक्षिणावर्ती शंख घर या आफिस से गंगाजल का छिड़काव करें, नारायण का वास बना रहेगा। जहां नारायण का वास हो, वहां लक्ष्मी स्वतः विराजमान हो जाती हैं।
अधिक जानकारी के लिये संपर्क करे पंडित कौशल पाण्डेय 09968550003

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